तसल्ली
कभी उन जल्दबाज़ी के जज़्बातों
पे तसल्ली से सोचूँगा
तो शायद मेरी गलतियों की गठरी में
वो सब दिन जोड़ लूंगा
जो बस तेरे साथ रहने में गुज़र गए।
पर कभी उस धीमें से चढ़ते-बढ़ते इश्क़
पे उस तसल्ली से गौर करूँगा
तो शायद वो इश्क़ इश्क़ ही नही रहेगा
और ना मैं मैंं रहूंगा -
सांस तो रहेगी पर साथ के वो दिन नही रहेंगे।